साल-दर-साल देश में लाखों
डॉक्टर बैचेलर ऑफ मेडिसीन एंड बैचेलर ऑफ सर्जरी(एमबीबीएस) की डिग्री लेकर सामने आ
रहे हैं. हालांकि, ये डॉक्टर सरकारी नौकरी में तो हैं मगर वे पूरे मन से नौकरी के
लिए समर्पित नहीं दिखते. उनमें से ज़्यादातर का ध्यान निजी प्रैक्टिस पर ही
केन्द्रित होता है. मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई की अगर बात की जाय तो वहां भी
शिक्षकों का अभाव ही दिखता है. एक तो इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव, साथ ही पर्याप्त स्वास्थ्य
संबंधी पढ़ाई के लिए विभागों की कमी. कभी-कभार ही दो-एक क्लास लेकर डॉक्टर चले
जाते हैं. इसे मनमानी ही कह लें.
अगर डॉकटरी की डिग्री मिलते
समय ही उन्हें एक निश्चित समयावधि तक सरकारी नौकरी के लिए अनिवार्य रूप से अनुबंधित
कर लिया जाय तो इसके सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं. दिये गये समयावधि तक नौकरी
करने की अनिवार्यता से बचने की कोई गुंजाइश न छोड़ी जाये. हालांकि इसके विरोध में
भी तमाम डॉक्टर्स आंदोलन करेंगे. पहले भी करते आये हैं. इसके लिए सरकार को भी दृढ़
निश्चय के साथ कदम उठाना होगा. आखिर कब तक आंदोलन करेंगे?
मगर हां, इसके लिए सरकार को
भी ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि डॉक्टर्स को वे तमाम सुविधायें मुहैया करानी होंगी
जिसकी कमी से वे निजी प्रैक्टिस का रुख करते हैं. जाहिर है सब उसे वेतन, भत्ता और तमाम
सुविधायें मिलेंगी तब तो डॉक्टर्स को क्योंकर कोई दिक्कत होगी. इसके बावजूद अगर वे
ऐसा कदम उठाते हैं तो इसके लिए दंडात्मक प्रावधान भी ज़रूर होने चाहिए.
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