Saturday, June 22, 2019

दावों की हक़ीक़त का परिणाम त्रासदी


बिहार में पिछले 20-25 दिनों से जारी बच्चों की चमकी बुखार(एक्यूट इनसेफलाइटिस सिन्ड्रोम,एईएस) से मौत के सिलसिले ने बरबस झकझोर कर रख दिया है. मुज़फ्फरपुर, वैशाली जैसे जिलों में आये दिन त्रासद खबरें सामने आ रही हैं. वैशाली जिले के एक गांव में सात बच्चों की मौत हो गयी. केन्द्र से डाक्टर और पैरामेडिक्स टीम भेजने का भी फैसला तब लिया गया जब मामला काफी बिगड़ चुका था. माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी तब दौरा किया जब तकरीब 10-12 दिन बीत चुके थे. राज्य और केन्द्र के स्वास्थ्य मंत्रियों का रवैया संतोषजनक नहीं ही दिखा.
पहले तो प्रभावितों और उनके अभिभावकों को उपदेश की घुट्टी पिलायी गयी कि बच्चे रात में भूखे पेट सो जाते हैं. जहां-तहां जमीन पर गिरी लीचियां खा लेते हैं. अब सवाल उठता है कि गरीबी की मार झेल रहे लोग आखिर करें तो क्या करें. सरकारी दावों का तो अन्त नहीं है. दावों की हक़ीक़त ऐसी त्रासदी के रूप में सामने आ रहा है.
जब यह सिलसिला रफ्तार पकड़ चुका था तब मीडिया वालों की नींद खुली. उन्होंने डाक्टरों की खिंचाई(?) शुरू कर दी. यहां तक कि काम में लगे डाक्टरों को भी जलील करने में कोई कसर न छोड़ी. अगर मीडिया वाले इतने ही संजीदा हैं तो ऐसी स्थिति के मूल कारणों पर प्रकाश डालना लाजिमी नहीं था. अब सरकार उन्हें लापरवाही के आरोप में सस्पेंड कर रही है.
ऐसी तमाम कार्रवाइयों से पहले केन्द्र और राज्य सरकारों को व्याप्त लालफीताशाही को दूर करना होगा. इस आपदा को लेकर क्या सरकार और व्यवस्था ने पर्याप्त सजगता दिखायी? आखिर कब तक अपनी गलती दूसरों पर थोपकर उन्हें बलि का बकरा बनाया जाता रहेगा?

Saturday, June 15, 2019

Doctors’ Protest-A Major Challenge

Fatal attacks on doctors are not the only root cause of the medicos’ stir. Sparked in West Bengal, spread across the country in a fraction of time, the stir reminds about the lack in health care system. Besides, even the private doctors have joined the protest. The spread of stir nationally can’t be taken casually. Though, there are few photos circulated in social media showing doctors are checking the patients despite resignations. How shouldn’t it be applauded? As far as medical care is concerned, the doctors are the target within reach. So, they have to bear the brunt of any people connected with the patients/victims. But the question is: Are they sole responsible?
Doctors from All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) and Safdurjung Hospital, the prominent hospitals in Delhi, joining the protest indeed reflects its gravity. Besides, doctors from Mumbai, Chandigarh, Jammu & Kashmir hospitals have expressed their solidarity. The attitude of CM Mamata Banerjee is criticized by prominent personalities. Mamata’s audacious attitude has irked most of the doctors fraternity. While Ms Banerjee says that is a conspiracy of Bharatiya Janata Party(BJP) and a plot of outsider as well. When Calcutta High Court refused to intervene, then CM began making calls for negotiations.   
However, the news concerning clash between doctors and people mostly have places in the media. It is quite natural that whose patient suffers or dies will be agitated. On the other hand, the medicos do try to save the ailing patients, but what would they do if there is lack of resources.
In the meantime, AIIMS has delivered a statement to meet the demands within 48 hours, otherwise the stir would intensify. Issuing this warning, doctors are expressing their determination for their protest. Medical system would definitely collapsed if it is not looked in within time-frame. They even warned of withdrawal of whole non-essential health services from 17 June.
It is learnt that 73% of the total population of India live in the rural areas, while 26.1 % of them are below poverty line. There is huge lack of healthcare infrastructure in the prevailing system. Several major weaknesses appear as deterrant. However, funding allocated on national level which is 4.1 % of GDP,which is comparatively high. On the other hand, government funding is   low to 1% in comparison to other emerging nations. Hence, the present plight makes the situation grim and the mass pass away without medical care.
In this context, the private health sectors are thriving day-by-day. The maximum part of health care system in our country is dominated by private sectors. Significantly, 70% of the total delivery market delivered in India by private sectors. It evidently shows that the healthcare has gone far from the commoners. Like this, they can avail the medical facilities who have opulent wealth. Though, a super speciality hospital Gujarat Adani Institute of Medical Sciences has been established. However, it claims to provide medical facilities even to the common people. If it is, then there must be at least 50 more such hospitals in a vast nation like India.
In addition,there are several other reasons for unrest. One of the significant reasons is the centre-state relation-stern or cordial. However, if the governments in the centre and the state are of same fold, then there is doubt of status quo. If the governments of different folds are in centre and state then there is a fair chance of tussle. Ultimately, people are the sufferers.   

Tuesday, June 11, 2019

Power-Family To Person

The power remains the same with attitudes, positive or negative. The only difference is that it is transferred from one family to one person. The same actions and reactions are present in the respective places. The opposition is in a negligible state. Almost futile. Talking about tolerance but acts with intolerance. Journos from Uttar Pradesh were charged for posting about CM Yogi Adityanath. BJP activist was put behind the bars for sharing West Bengal CM Mamata Bannerjee's meme. In past Congress regime the situation was more or less the same. Those who went upstream, were harassed, charged. Then how can it be said the situation has changed now. Nothing different is seen till now. As said-morning shows the day-it is more or less assumed what would be the next scene/approach. Anyway, hope for the best 

Monday, June 10, 2019

बंदिश लगे डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर


साल-दर-साल देश में लाखों डॉक्टर बैचेलर ऑफ मेडिसीन एंड बैचेलर ऑफ सर्जरी(एमबीबीएस) की डिग्री लेकर सामने आ रहे हैं. हालांकि, ये डॉक्टर सरकारी नौकरी में तो हैं मगर वे पूरे मन से नौकरी के लिए समर्पित नहीं दिखते. उनमें से ज़्यादातर का ध्यान निजी प्रैक्टिस पर ही केन्द्रित होता है. मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई की अगर बात की जाय तो वहां भी शिक्षकों का अभाव ही दिखता है. एक तो इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव, साथ ही पर्याप्त स्वास्थ्य संबंधी पढ़ाई के लिए विभागों की कमी. कभी-कभार ही दो-एक क्लास लेकर डॉक्टर चले जाते हैं. इसे मनमानी ही कह लें.
अगर डॉकटरी की डिग्री मिलते समय ही उन्हें एक निश्चित समयावधि तक सरकारी नौकरी के लिए अनिवार्य रूप से अनुबंधित कर लिया जाय तो इसके सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं. दिये गये समयावधि तक नौकरी करने की अनिवार्यता से बचने की कोई गुंजाइश न छोड़ी जाये. हालांकि इसके विरोध में भी तमाम डॉक्टर्स आंदोलन करेंगे. पहले भी करते आये हैं. इसके लिए सरकार को भी दृढ़ निश्चय के साथ कदम उठाना होगा. आखिर कब तक आंदोलन करेंगे?
मगर हां, इसके लिए सरकार को भी ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि डॉक्टर्स को वे तमाम सुविधायें मुहैया करानी होंगी जिसकी कमी से वे निजी प्रैक्टिस का रुख करते हैं. जाहिर है सब उसे वेतन, भत्ता और तमाम सुविधायें मिलेंगी तब तो डॉक्टर्स को क्योंकर कोई दिक्कत होगी. इसके बावजूद अगर वे ऐसा कदम उठाते हैं तो इसके लिए दंडात्मक प्रावधान भी ज़रूर होने चाहिए.
    
     


पुराने मेडिकल कॉलेजों को पहले करें सुव्यवस्थित


देश में आये दिन नये-नये मेडिकल कॉलेज शुरू किये जा रहे हैं और इस संबंधी घोषणायें भी हो रही हैं. हालांकि इसे एक सकारात्मक कदम ही कहा जा सकता है. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोले जाने का लक्ष्य तो यही हो सकता है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया करायी जायें. इसके साथ ही एक सवाल स्वतः उठता है कि पहले से चल रहे मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में सारी ज़रूरी सुविधायें उपलब्ध हैं. हक़ीक़त में तो ऐसा नहीं दिख रहा है. बिहार राज्य के ही तमाम मेडिकल कॉलेजों पर गौर किया जाये:
-क्या सभी कॉलेजों में पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध हैं?
-क्या सभी कॉलेजों में स्वास्थ्य संबंधी सभी विभाग सक्रिय हैं
?
-क्या वहां नियमित कक्षायें ली जा रही हैं
?
तमाम शहरों के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में अराजकता का माहौल है. मरीजों को समुचित इलाज तक नहीं मिल पाता. डॉक्टर्स भी बस अस्पताल में राउंड लगाने भर को ही ड्यूटी मानते हैं. राउंड लगाया और चंद मरीज देखे-बस हो गयी ड्यूटी. इस सोच से मरीजों का क्या भला हो सकता है, शायद बताने की ज़रूरत नहीं.
वास्तविकता की कसौटी पर तो सभी प्रश्नों पर सवाल रह ही जाते हैं. नये मेडिकल कॉलेज भी आखिरकार सरकार के लिए सिरदर्द के सिवा और कुछ नहीं साबित होंगे. लिहाजा, नये कॉलेज खोलने से क्या सभी समस्यायें सुलझ जायेंगी? शायद नहीं. तो मौजूदा मेडिकल कॉलेजों को ही पहले सुव्यवस्थित क्यों नहीं किया जाये. इसे दुरुस्त करने के बाद ही कोई नया प्रोजेक्ट पर विचार किया जाये.

Saturday, June 8, 2019

That’s All

I was amused of my recent meeting with a celebrity. Asked him that how he leads his life alone and deal with fanfare. His abrupt reply seemed to be mesmerising. I get befriend with the kitchen, bedroom and obviously toilet and have no time for the extras. A large peg to every fan. That’s all. 

And She Got Away


Going through a park in sullen mood, sat on a bench beneath one of the trees. While inhaling the soothing breeze, saw someone came and sat beside me. How do you value the life? All of a sudden it hit my ears. I replied casually-‘As it comes.’ She stood with a shrug and got away.

पानी के लिए हाय-हाय


दिल्लीमध्य प्रदेशतमिल नाडूकर्नाटक...तमाम जगहों में हाय पानी!’ हाय पानी!’ मची है. कहीं लोग बाल्टी तो कहीं कैन लिये दौड़ रहे हैं. मध्य प्रदेश के शहर में तो पुलिस का पहरा तक लगा दिया गया है. कोई भी आपदा आयेआरोप आम’ लोगों पर मढ़ दिया जाता है. ऐसा नहीं कि वे जिम्मेदार नहीं होते. होते हैं मगर वही सरासर जिम्मेदार नहीं होते. ‘खास’ लोग भी जिम्मेदार होते. यों कहें कि बराबर के जिम्मेदार होते हैं. उनकी चमचमाती गाड़ियों की चमककोठी के सामने वाले लॉन की हरियाली बरकरार रखने के लिए कितने ही क्यूसेक पानी की बलि चढ़ा दी जाती है. सड़कों के किनारे वॉटर सप्लाई की टोंटी-विहीन पाइप से पानी की सतत बहती धार का दृश्य तो आम है. एक कहावत है: चोर के सामने ताला क्याबेईमान के सामने केवाला क्या.  ‘केवाला’ ज़मीन की खरीद-बिक्री संबंधी एक दस्तावेज़ होता है. अपना क्या जाता है” सोच ने हमलोगों को भी ग्रस लिया है. यह भी नहीं लगता कि अपनी “माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम” की सोच एक दिन हमें कहां ले जायेगी. कतई ताज्जूब नहीं होना चाहिए कि कुछ जगहों का यह नज़ारा पूरे मुल्क का मंज़र बन जाये.

...क्यों पड़ गये बीच में?

इसे एक मज़ाक़ कहें या आघात- जब कोई दो लोगों के बीच कोई तीखी बहस हो रही हो और तीसरा उस बहस को सुलझाने की पहल करता है. अक्सर सुनने को मिलता है कि इसमें आपके पड़ने की दरकार तो नहीं थी. ठीक है भई, अब ख्याल रखेंगे. वहीं, जब आपकी किसी के साथ बातचीत या बहस हो रही हो तो कोई तीसरा उसमें सहज ही दखल देने लगता है. इस सूरत में कोई भी यह सोचने के लिए बाध्य तो होगा ही कि यह क्या गड़बड़झाला है. लब्बोलुबाब यही है आपके मामले में कोई भी दखल दे सकता है मगर आप किसी के मामले में नहीं. आखिर इस ज़िन्दगी के लिए तो यही कहा जा सकता है- बहुत कठिन है डगर पनघट की.

Thursday, June 6, 2019

अगर मुल्क का एहतराम....

अगर मुल्क का एहतराम करते,
इस कदर नाम बदनाम न करते।
अम्नोमुहब्बत का पैगाम दिया है,
रहीम को भी इसने ही राम दिया है।
बांटने का ऐसा कोई काम न करते।...अगर मुल्क का
कब तलक चलेगी नफरत की आंधी,
ज़र्रे-ज़र्रे में समाये सुभाष और गांधी।
सही सोचने को किसी ने ज्ञान दिया है।...अगर मुल्क का
अगर मुल्क का एहतराम करते,
इस कदर नाम बदनाम न करते।

Wednesday, June 5, 2019

হারান সুর

হারান সুর আর খূঁজে পাই না,
সেই ছাড়া আর কিছু চাই না।
অন্তরে উঠে যেন ভাবনার ঝড়,
বিকল মন কে বোঝান যাই না।
বারে-বারে কেন মনে আসে তার,
কারণ যেন আর বুঝিতে পাই না।
কেন সেই চলে আসে নীরব মনে,
হাজার যত্ন করেও পারা যাই না।
আর কোন চাহিদা নাই গো মনে,
দোর আর হৃদয়ের খোলা যাই না।

Tuesday, June 4, 2019

Criticism Without Introspection

It has become usual to criticise others for their attitudes and actions. Most of us abruptly decry them even without introspecting self. If it is pondered and analysed properly, it might be resolved amicably. One day one of my relatives severely criticised someone. The subject was more or less the same he could be connected with. When I pointed that, he began to mend and mould it, by any means. I didn't say a word and just smiled, thinking about the attitudes and thinking of the people.

Saturday, June 1, 2019

अपने अंदाज़ में मोदी की वजीफा बढ़ाने की घोषणा


गत 30 मई को शपथ लेने के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना में परिवर्तन करने के अलावा दी जाने वाली राशि में बढ़ोतरी को पहली मंजूरी दी. इसमें अब प्रदेश पुलिस को भी शामिल किया गया है. राष्ट्रीय रक्षा निधि(एनडीएफ) के तहत लड़कियों को दी जाने वाली वजीफा राशि 2,250 रुपये से बढ़ाकर 3000 रुपये तथा लड़कों के लिए 2000 से 2500 रुपये करने की घोषणा की. इस घोषणा को मोदी ने समर्पित करने का नाम दिया जो उनके अंदाज़ को बखूबी बयान करती है. 



उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि उनकी सरकार का पहला फैसला भारत की रक्षा करने वालों को समर्पित है. इसमें उग्रवाद प्रभावित राज्यों के पुलिस बलों के आश्रितों को भी इसके दायरे में लाया गया है. इसके तहत नक्सलवादी हमले में शहीद हुए पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों के परिवारों को भी शामिल किया गया है.राज्य पुलिस बलों के परिजनों के लिए यह राशि पांच सौ रुपये सालाना होगी.      

वर्ष 1962 में गठित राष्ट्रीय रक्षा कोष के ज़रिये प्राप्त राशि का उपयोग मारे गये सशस्त्र पुलिस केन्द्रीय और रेल सुरक्षा बलों के आश्रितों को उच्च शिक्षा मुहैया कराने के लिए किया जाता है.