Thursday, February 17, 2022

नहीं भाया प्रियंका का सुर मिलाना


 'बिहार और यूपी (उत्तरप्रदेश) के भैयों' को पंजाब में घुसने नहीं देंगे. यही कहा था पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने. चुनावी दौरे पर पहुंची कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी खिलखिलाकर मुख्यमंत्री के सुर में सुर बखूबी मिलाया. यह तो तय है कि बिहार-यूपी के निकलते ही पंजाब की आर्थिक स्थिति चरमरा जायेगी.

बहरहाल, चन्नी की बातों पर प्रियंका वाड्रा का समर्थन कुछ क्या काफी अटपटा लगा.उन्हें याद होना चाहिए कि उत्तरप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव जारी है. वहां कांग्रेस की उल्लेखनीय मौजूदगी भी है. माना कि चुनावों के दौरान जहां होते हैं वहां के रंग में रंगना पड़ता है, खासकर सियासतदानों को.मगर कुछ मुद्दे तो व्यापक होते हैं. समस्त क्षेत्र में समान होते हैं. चन्नी ने जो कहा उसे संभालने के बजाय प्रियंका साहिबा भी उसी रौ में बह गयीं.

हालांकि, पंजाब में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. पहले भी 'बिहार-यूपी के भैयों' के राग अलापे जा चुके हैं. हमने भी पंजाब में कुछ साल गुज़ारे हैं. पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण. एक शाम एक पड़ोसी के घर हम चंद लोग चाय की चुस्कियां ले रहे थे.तभी वहां मौजूद सज्जनों में से एक ने वही बात छेड़ दी. उस दौरान बाहरी लोगों को लेकर प्रदेश में बावेला भी मचा था.

बात छिड़ने पर हमने शांत भाव से एक सवाल रख दिया-पंजाब के प्रशासनिक और पुलिस महकमों में कितने आईएएस-आईपीएस अधिकारी प्रदेश के हैं?इस अप्रत्याशित प्रश्न पर किसी को कोई जवाब न सूझा. फिर हमने राज्य के अधिकांश जिलों के अफसरों के नाम गिनवा दिये जो यूपी-बिहार से ताल्लुक रखते थे.

बातचीत के दौरान यह सवाल भी उभरा कि कनाडा, अमरीका, इटली गये प्रदेश के तमाम लोगों में क्या सभी लोग कलक्टर-कमिश्नर के ओहदे पर हैं. सभी जानते हैं कि वे वहां क्या काम करते हैं.

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की सदारत में कांग्रेस का परचम बुलंदी से लहरा रहा था. पिछले कुछ महीनों में पार्टी के अंदरुनी घमासान और कैप्टन अमरिंदर के पार्टी छोड़ने के वाकये से सभी वाकिफ हैं.

लिहाजा, इन सब बातों के मद्देनजर मतदाताओं को सावधान तो ज़रूर हो जाना चाहिए. अगर अब भी नहीं संभले तो कब चेतेंगे?जब मर्ज़ लाइलाज हो जायेगा तब? जाति-थर्म-संप्रदाय की आग तो सुलग ही रही है.अब और क्या देखने की ख़्वाहिश रह गई है?

Thursday, February 10, 2022

Distorting The Youth


As a matter of fact, the perception is dress code and uniforms are limited to within the purview of school education. The college going students, obviously, have some aspirations. The age-factor counts.

A transitional phase they are in. Where the children seek liberty. It can't be put out of the context. The parents as well as the institutions should co-operate with them instead of forcing for anything. It's the stage where most of them look for understanding, compassion and above all, befriending. 

Our country India is acknowledged as 'a nation with maximum youth force' globally. 

Meanwhile, the entry of political forces in their lives bring a drastic change. Almost hazardous. Political or social (?) organisations carry their own agenda. Those   forces extract the abilities and power by exploiting the youth. 

After exploitation, the same youth faces repression too, by the establishment, when they revolt against injustice. Face lathi-charge, firing, even lose lives. 

In fact, crossing the adolescent stage they need utmost care to get them prepared against evil forces. Mostly get distracted at this crucial point. Infatuation is also one of the factors.