इसे एक मज़ाक़ कहें या आघात- जब कोई दो लोगों के बीच कोई तीखी बहस हो रही हो और तीसरा उस बहस को सुलझाने की पहल करता है. अक्सर सुनने को मिलता है कि इसमें आपके पड़ने की दरकार तो नहीं थी. ठीक है भई, अब ख्याल रखेंगे. वहीं, जब आपकी किसी के साथ बातचीत या बहस हो रही हो तो कोई तीसरा उसमें सहज ही दखल देने लगता है. इस सूरत में कोई भी यह सोचने के लिए बाध्य तो होगा ही कि यह क्या गड़बड़झाला है. लब्बोलुबाब यही है आपके मामले में कोई भी दखल दे सकता है मगर आप किसी के मामले में नहीं. आखिर इस ज़िन्दगी के लिए तो यही कहा जा सकता है- “बहुत कठिन है डगर पनघट की.”
No comments:
Post a Comment