बिहार में पिछले 20-25 दिनों से जारी बच्चों की चमकी बुखार(एक्यूट इनसेफलाइटिस सिन्ड्रोम,एईएस) से मौत के सिलसिले ने बरबस झकझोर कर रख दिया है. मुज़फ्फरपुर, वैशाली जैसे जिलों में आये दिन त्रासद खबरें सामने आ रही हैं. वैशाली जिले के एक गांव में सात बच्चों की मौत हो गयी. केन्द्र से डाक्टर और पैरामेडिक्स टीम भेजने का भी फैसला तब लिया गया जब मामला काफी बिगड़ चुका था. माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी तब दौरा किया जब तकरीब 10-12 दिन बीत चुके थे. राज्य और केन्द्र के स्वास्थ्य मंत्रियों का रवैया संतोषजनक नहीं ही दिखा.
पहले तो प्रभावितों और उनके अभिभावकों को उपदेश की घुट्टी पिलायी गयी कि बच्चे रात में भूखे पेट सो जाते हैं. जहां-तहां जमीन पर गिरी लीचियां खा लेते हैं. अब सवाल उठता है कि गरीबी की मार झेल रहे लोग आखिर करें तो क्या करें. सरकारी दावों का तो अन्त नहीं है. दावों की हक़ीक़त ऐसी त्रासदी के रूप में सामने आ रहा है.
जब यह सिलसिला रफ्तार पकड़ चुका था तब मीडिया वालों की नींद खुली. उन्होंने डाक्टरों की खिंचाई(?) शुरू कर दी. यहां तक कि काम में लगे डाक्टरों को भी जलील करने में कोई कसर न छोड़ी. अगर मीडिया वाले इतने ही संजीदा हैं तो ऐसी स्थिति के मूल कारणों पर प्रकाश डालना लाजिमी नहीं था. अब सरकार उन्हें लापरवाही के आरोप में सस्पेंड कर रही है.
ऐसी तमाम कार्रवाइयों से पहले केन्द्र और राज्य सरकारों को व्याप्त लालफीताशाही को दूर करना होगा. इस आपदा को लेकर क्या सरकार और व्यवस्था ने पर्याप्त सजगता दिखायी? आखिर कब तक अपनी गलती दूसरों पर थोपकर उन्हें बलि का बकरा बनाया जाता रहेगा?
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