जेठ की
भरी दोपहरी में जब जिस्म
से टकराती हैं अंगारे उगलती हवायें
तो ज़िन्दा होने का अहसास होता है।
वैसे तो दुनिया के हर एक मोड़ पर
मिलने वाले लगते ढो रहे ज़िन्दगी
दिल खोखला रेशमी लिबास होता है।
यूं तो ओढ़े रहते कमोवेश हर लोग
अपने चेहरे पर दो इंच की मुस्कान
हक़ीक़त भांप लेता जो खास होता है।
कह भी तो न सकते सबसे हालेदिल
जाने क्या हो सामने वाले के मन में
ताड़ लेता है जो दिल के पास होता है।
से टकराती हैं अंगारे उगलती हवायें
तो ज़िन्दा होने का अहसास होता है।
वैसे तो दुनिया के हर एक मोड़ पर
मिलने वाले लगते ढो रहे ज़िन्दगी
दिल खोखला रेशमी लिबास होता है।
यूं तो ओढ़े रहते कमोवेश हर लोग
अपने चेहरे पर दो इंच की मुस्कान
हक़ीक़त भांप लेता जो खास होता है।
कह भी तो न सकते सबसे हालेदिल
जाने क्या हो सामने वाले के मन में
ताड़ लेता है जो दिल के पास होता है।
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