Thursday, January 6, 2022

नीतीश:'मौके पर चौके' का इंतज़ार


 राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को साथ आने का खुला आमंत्रण आख़िर किस बात का इशारा करता है? यह बात तमाम राजनेताओं, विश्लेषकों से लेकर मीडिया वीरों की जेहन में कुलबुलाने लगी होगी.

सही भी है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, जातिवार जनगणना कुछ ऐसे कारक हैं, जो मुख्यमंत्री की 'अंगड़ाई' की ओर इंगित करते हैं. दिसम्बर 2021 में शुरू हुई समाज सुधार यात्रा के जरिये वह यह संदेश देने के प्रयास में हैं कि 'नशाबन्दी' पर वह पूरी तरह अडिग हैं. जातिवार जनगणना प्रकरण पर केन्द्र से मिलने गये सर्वदलीय शिष्टमंडल में  राजद भी शामिल था.

वैसे भी, 2020 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 74 सीट और जदयू को मिली 43 सीटों से नीतीश कुमार खासे खिन्न लगते हैं. इससे पहले तो वह बिहार में 'बड़े भाई' की भूमिका में रहे हैं.

सर्वविदित है कि प्रदेश में जातिगत समीकरणों पर चुनाव लड़े और जीते जाते हैं. पिछले साल हुए विस उपचुनाव को अपवाद मान सकते हैं.

वहीं, भाजपा का अमोघ अस्त्र 'ध्रुवीकरण' ही याना जा सकता है. अमूमन हर लोकसभा-विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल करती है. जातिगत समीकरण में भाजपा बाज़ी नहीं ही मार सकती क्योंकि इस में प्रदेश स्तर पर कोई दिग्गज नेता नहीं दिख रहे. 'संप्रदाय' और 'राष्ट्रवाद' जैसे मुद्दे भड़काना पार्टी की मजबूरी भी है.

बहरहाल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जातिगत वोट किसी अन्य जातियों की तुलना में कमतर ही हैं. लिहाजा किसी अन्य दल के साथ गठबंधन करना उनकी भी बाध्यता है. अगला लोकसभा चुनाव 2024 में है जबकि बिहार विधानसभा चुनाव वर्ष 2025 में है. तबतक राजनीतिक परिदृश्य में कितनी तस्वीरें उभरेंगी और डूबेंगी.


1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर और सटीक विश्लेषण 🙏🙏

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