Saturday, August 28, 2021

जब डालटनगंज में मिले फिर दो 'धुरंधर'


समय बीतता रहा. इस बीच 1995 का वह उल्लेखनीय साल आया जब पटना से नवभारतटाइम्स का प्रकाशन बंद हो गया. क्यों और कैसे हुआ, यह चर्चा का विषय नहीं है. इस दौरान हम पर भी पत्रकारिता का रंग चढ़ने लगा था.

स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं के अलावा रांची से प्रकाशित दैनिक देशप्राण के लिए भी बतौर संवाददाता काम करने लगे थे. नवभारतटाइम्स के बंद होने पर उससे जुड़े पत्रकार इधर-उधर चले गये.

अगस्त 95 में एक दिन हमारे पास ब्रजेश भाई का फोन आया. उन्होंने पटना आकर मय-सामान मिलने के लिए कहा. पटना पहुंचने पर उन्होंने हमें रात की गाड़ी से डालटनगंज जाने के लिए कहा.

हमारी तो जैसे लॉटरी ही खुल गयी. वहां हमें विनोद बंधु जी मिले. वह और ब्रजेश भाई नवभारतटाइम्स से आये थे. डालटनगंज से एक क्षेत्रीय अख़बार राष्ट्रीय नवीन मेल प्रकाशित होता था.

अख़बार की संपादकीय टीम ने इसे जल्द ही पाठकों की ज़रूरत बना दी.

कुछ पाठकों ने यह टिप्पणी दी-' वैसे तो आज हमने कई अख़बार पढ़े मगर राष्ट्रीय नवीन मेल न पढ़ने पर लगा जैसे आज हमसे कुछ छूट गया है.' यह बात किसी अख़बारनवीस के लिए क्या मायने रखता है, यह तो वही बता सकता है.

डालटनगंज में काम करते हुए हम अपनी धुन में मस्त हो गये. जैसे एक ख़ुमार-सा छा गया था. एक दिन जब तैयार होकर प्रेस गया तो समाचार संपादक के पास कुर्सी पर दुबली-पतली काया वाले एक सज्जन बैठे दिखे. पास जाकर देखा- 'अरे, ये तो अपने वाजपेयी जी हैं.' बंधु जी ने हम दोनों का परिचय कराया. उन्हें नमस्कार कर हम कुछ देर वहीं खड़े होकर कुछ देर बातें की.

फिर क्या कहने! अपनी टीम की तो कोई सानी नहीं रही. बंधु जी और वाजपेयी जी की  लेखनी और कुशल नेतृत्व में राष्ट्रीय नवीन मेल ने जैसे 'तूफान मेल' का रूप इख़्तियार कर लिया.

( अगले भाग में पढ़ें 'दहला गयी 'टावर हाउस' के खोने की मनहूस खबर ने')

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