Thursday, August 26, 2021

हिन्दी पत्रकारिता के 'टावर हाउस' वेद प्रकाश वाजपेयी




 "अगर किसी को खुश करना है तो उसकी मुलाज़िमत करो,पत्रकारिता पर तो तोहमत न लगाओ."

दुबली-पतली काया और चेहरे पर लंबी दाढ़ी. उनके बारे में किसी को पहला आभास यही मिल सकता था. उस चेहरे में दो गहरी- गंभीर आंखें.उनकी  नज़र सामने वाले किसी के भी दिल में गहराई तक उतर जाती. यह बात दिगर है कि उन आंखों की एक्स-रे मानिंद किरणें अगले पर क्या प्रभाव डालती हैं. वह शख़्स थे हिन्दी पत्रकारिता के एक स्तम्भ वेद प्रकाश वाजपेयी.
बात बीसवीं सदी के नौवें (9वें) दशक की है. जब हम पहली बार उनसे मिले थे. तब वाजपेयी जी पटना से प्रकाशित हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स से जुड़े थे. उनको प्रेस की तरफ से भागलपुर भेजा गया था.
उस समय तक हम भी पत्रकारिता के पेशे की तरफ आकर्षित होने लगे थे. हिन्दी-अंग्रेज़ी पत्रकारों के बीच बैठने लगे थे. उनके आने के बाद तो अपने भी डेढ़-दो घंटे उनके सानिध्य में बीतने लगे. हमें तो स्नेह की अनुभूति हुई जब उन्होंने पहली बार हमारी तरफ देखा.
शहर में आते ही वाजपेयी जी ने एक बार फिर भागलपुर दंगों से संबंधित नयी ख़बर निकाली. इससे राज्य सरकार की खासी किरकिरी हुई थी. तब उनके रुख और नज़र का दूसरा पहलू सामने आया जब सामने वाला थर्रा गया. आलम यह था कि उनके मुरीदों में वे भी शामिल थे जिनके ख़िलाफ उन्होंने लिखा.
ऐसा मानते हैं कि हर विलक्षण प्रतिभा के साथ-साथ कोई न कोई 'सनक' चलती है. वाजपेयी जी को भी 'पीने' का बेहद शौक था. यह कहना कि उनका सिद्धांत "कम खाना-अधिक पीना" था तो शायद ग़लत न होगा. खाना तो उनका शायद बस दो से तीन कौर ही था.
उनके बारे में कोई भी जो चाहे अपनी राय कायम कर सकता है. हमने भी की. शायद वह अपनी स्थिति से किसी को भी मुश्किल में डालना पसंद नहीं करते थे. शायद यही सोचकर वेद जी ताउम्र कुंवारे ही रहे. हालांकि उनके अलावा कोई इस बात का दावा नहीं कर सकता.
हिन्दी पत्रकारिता के मशाल वाजपेयी जी की निर्भीकता और सच के साथ डटे रहने के कितने ही किस्से बिखरे पड़े हैं.
(अगले ब्लॉग में पढ़ेें उनकी निर्भीीकता की मिसाल)



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