Monday, May 20, 2019

खतरनाक है अन्यमनस्क होने का भाव

जब भी कोई पहल करते हैं तो अधिकांशतः अन्यमनस्क भाव का ही सामना करना पड़ता है. एक-दो बार तो क्या अक्सर ऐसी स्थिति सामने आती है. तो क्या करना चाहिए? तो क्या कुछ भी नहीं कहना या करना चाहिए? आत्ममंथन के साथ-साथ मानसिक मंथन भी किया. सवाल यह उठता है कि क्या इस स्थिति को बदला नहीं जा सकता है. शायद नहीं, क्योंकि अगर बदलना होता तो चार-पांच बार में ही कोई सकारात्मक परिणाम सामने आ जाता. ऐसा नहीं कि कोई परिणाम सामने नहीं आया. आया, ज़रूर आया. वह विरोधी, नकारात्मक भी कह सकते हैं, परिणाम ही सिद्ध हुआ. कहते हैं कि पुरानी आदत, अभ्यास तुरन्त बदले नहीं जा सकते. सही है. इस तर्क के साथ ही एक सवाल यह भी सहज ही उभरता है कि किसी भी पहल को गंभीरता से लिया गया या नहीं. गंभीरता-इस एक शब्द पर अगर ग़ौर किया जाये तो पहली बार में ही स्थिति बदल सकती है.

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