Friday, September 5, 2025

बिहार के वोटर बंधुओं को खुली चिट्ठी


 यह तो आपलोग मानते ही होंगे कि बिहार धरती में निज़ाम को बदलने की ताक़त है. यह तो याद ही होगा उस generation के लोगों को जिन्होंने साल 1977 में कांग्रेस को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था. इसके मूल में वर्ष 1974 का छात्र आंदोलन और 1975 की Emergency का दौर. उसके बाद कई पीढ़ियाँ आयीं. उनको यह समझाना हमारा फ़र्ज़ है कि व्यवस्था की मनमानी पर नकेल डालने की भी ज़रूरत होती है. 

यह तो सभी महसूस कर रहे होंगे कि वर्ष 2014 से पहले की शासन-व्यवस्था में ख़ामियाँ थीं मगर Freedom of Expression क़ायम था. आज तो हालात ये हैं कि शासन के ख़िलाफ़ बोलें तो जेल और बगैर मुकदमा-सुनवाई के वहीं सड़ते रहना होगा. इसकी कई मिसालें भी हैं. पहले तो लोग साथ बैठ सियासी मुद्दों पर चर्चा भी करते थे. अब तो आलम है कि राजनीतिक चर्चा कब ख़तरनाक मोड़ ले ले. 

इसके पीछे एक अहम वजह यह भी है कि मौजूदा हाल पर "धर्म" का मुलम्मा चढ़ाकर बदरंग कर दिया है.  इसपर सत्ता में काबिज़ लोगों की ख़ामोशी इसे और भी संगीन बना रही है. लोगों में आपसी नफ़रत का बोलबाला हो गया है. सामाजिक संबंधों के साथ साथ हर संप्रदाय में शामिल जातियों के बीच भी दरार पैदा की जा रही है.

हाल ही में Election Commission of India ने Special Intensive Revision (SIR) drive चलाकर 65 लाख वोटरों को बेदख़ल कर दिया. वह भी एक महीने के अंदर! इसके बाद जो नतीजे सामने आए, काफ़ी हैरतअंगेज थे.हज़ारों से अधिक के मकान नंबर शून्य (0,zero) दर्शाए गए. कहीं एक ही मकान में 70-80 लोगों का रहना दिखाया गया. कहीं कहीं तो एक ही मकान में हिन्दू,मुसलमान,सिख और ईसाई समुदायों का रहना दिखाया गया. आख़िर ये भद्दा मज़ाक़ नहीं और क्या है मतदाताओं के साथ?

अब एक और संगीन मामला सामने आया है और वह "वोट चोरी" का. छानबीन के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि के मामलों पर सवाल उठाए गए.  सत्ता वोट चोरी के समर्थन में बिहार के Electoral Roll को ही website से हटा दिया गया. कई महत्वपूर्ण सवालों को चुनाव आयोग टाल गया या जवाब देने से साफ़ मना कर दिया.ज़िन्दा मतदाताओं को मृत घोषित कर दिया गया.इस विषय पर वोटरों को गंभीर होने की ज़रूरत है. अगर नहीं हुए तो वह परिस्थिति भी आ सकती जब लोगों को देश की सीमा से बाहर ढकेल दिया जाए. जैसा कुछ समय पहले कुछ लोगों को असम के रास्ते बांग्लादेश की सीमा पर जबरन भेज दिया गया था.

संवैधानिक प्रावधानों को आये दिन तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है संशोधनों के ज़रिए. सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए उन प्रदेशों की सरकारों को संविधान संशोधनों के अस्थिर करने की जुगत लगायी जा रही जहाँ विपक्ष काबिज़ है.

सत्तारूढ़ों के ख़तरनाक इरादों को नाकाम करने के लिए Electronic Voting Machine(EVM) को हटाकर Ballot Box को फिर से लाना होगा. ईवीएम हैक कर लिया जाता है. क्या कारण है अमरीका,इंग्लैंड आदि देशों में बैलट बॉक्स ही चलन में है. कहते हुए भी सुना गया है कि वोट किसी निशान पर डालो पड़ेगा तो कमल पर ही!

वहीं महंगाई, बेरोजगारी के बढ़ने की तो कोई सीमा ही नहीं है. मौजूदा शासन में तो ₹87 का एक डॉलर हो गया है. इससे देश की बदहाल अर्थव्यवस्था का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है.  उस पर गोदी मीडिया का यह तुर्रा कि अमरीका सबसे बड़ा कर्जदार है वगैरह-वगैरह. 

लिहाजा,तमाम वोटर बंधुओं से आग्रह है कि हम सभी समय रहते संभल जायें वर्ना अगला दिन और भी ख़ौफ़नाक हो सकता है.